शुक्रवार, 30 मार्च 2018

पत्रकारिता की स्वतंत्रता

आज इंटरनेट का युग आ गया हैं। बहुत ही कम समय मे भले ही इंटरनेट ने अपनी खास जगह बना ली हो, लेकिन आज भी अगर लोगो को बेसब्री से किसी का इंतज़ार रहता है तो वह है - समाचार पत्र ।हर रोज की घटनाओं का लेखा-जोखा पत्रकारों के पास रहता हैं। घटनाओ को कैसे वह प्रस्तुत करते है ,लोगो को जोड़ते है आदि सब पत्रकारिता कहलाता हैं। पत्रकारिता अभिव्यक्ति की कला हैं। आज जमाना फैक्स, मॉडम से कंप्यूटर तक आ पहुँचा हैं तो पत्रकारिता करने का ढंग भी आधुनिक हो चला हैं। आज रिकॉर्ड करके समाचार लिख दिए जाते हैं । आज पत्रकारिता समाचार -पत्रो तक ही सीमित नही हैं। इसने टेलीविजन जगत के न्यूज़ चैनलों, दूरदर्शन, रेडियो आदि को भी शामिल कर लिया हैं।पत्रकारिता एक समाज सेवा है । पत्रकारिता का महत्व जानते हुए सरकार ने कई सरकारी पत्रकारिता प्रशिक्षण केंद्र खोल दिए हैं।इन से प्रशिक्षण प्राप्त कर के विद्यार्थी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, फ़िल्म विभाग आदि में प्रवेश पा सकते हैं। पत्रकारिता का सीधा संबंध जनता से होता हैं। पत्रकारिता की स्वतंत्रता जहाँ लोकतंत्र का हथियार बन कर  उभरी है , वही इसकी स्वतंत्रता का दुरुप्रयोग भी होता रहा हैं। आज पत्रकारिता कुछ जगह बिक जाती हैं। पत्रकारिता पर जन - सेवा से अधिक निजी स्वार्थ भारी पड़ते दिख रहे हैं।

पत्रकारिता बुलंद ,
प्रचंड है।
शिवानी त्यागी

गुरुवार, 29 मार्च 2018

बोझ की मार

आज शिक्षा का स्तर दिन - प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हैं।उसी तरह स्कूल बैग का बोझ भी बढ़ रहा हैं। छोटे -छोटे बच्चे रोज अपनी क्षमता से ज्यादा भारी बैग ले जाने के लिए विवश हैं। शिक्षा जो कि सभी के लिए जरूरी हैं। वही भारतीय शिक्षा प्रणाली मे नयापन होने की आवश्यकता है।भारत में कानून तो बना है कि सी०बी०एस०ई० के अनुसार दूसरी कक्षा तक के बच्चो के बैग स्कूल मे ही रहने चाहिए ।लेकिन कोई भी स्कूल इसका पालन करता दिखाई नही देता। बच्चों के स्कूल बैग जो रोज भारी - भरकम  किताबो से भरे रहते हैं वो बच्चों के स्वास्थ्य पर भी सवाल उठाता है ? भारी भरकम बैग के कारण बच्चों की पीठ में दर्द व कमर झुकना एक आम बात सी प्रतीत होती दिखाई देती है। न जाने कितनी बार प्रशासन और स्कूल ने स्कूल बैग के वजन कम करने के वादे करें हैं लेकिन कोई भी इसे सहजता के साथ लेने को तैयार नही हैं। जब नया सत्र शुरू होगा फिर इसे मुद्दा बनाया जाएगा और फिर इस पर राजनीति होगी और बाद मे फिर बच्चे भारी बैग लेकर स्कूल जाएगे।

शिवानी त्यागी

सरकारी स्कूल

  जब भी कभी हम सरकारी स्कूल के बारे में सुनते हैं तो हमारे दिमाग में छवि बनती है टूटे हुए डेस्क , अध्यापक नहीं है , बच्चे इधर - उधर घूम रहे ...